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वरुथिनी एकादशी 2025 कब है? व्रत की तिथि, पूजा विधि, महत्त्व और कथा

दिनांक: 24 अप्रैल 2025, वार: गुरुवार
पर्व: वरुथिनी एकादशी व्रत एवं श्री वल्लभाचार्य जयंती

वरुथिनी एकादशी 2025: कब है व्रत?

वरुथिनी एकादशी व्रत 24 अप्रैल 2025, गुरुवार को रखा जा रहा है। यद्यपि एकादशी तिथि का प्रारंभ 23 अप्रैल को प्रातः 11:32 बजे हो गया था, परंतु व्रत उदयातिथि (सूर्योदय के समय मौजूद तिथि) के अनुसार 24 अप्रैल को रखा जाएगा। एकादशी तिथि का समापन 24 अप्रैल को प्रातः 9:55 बजे हो जाएगा।

वरुथिनी एकादशी का महत्त्व

“वरुथिनी” का अर्थ होता है “संकटों से रक्षा करने वाली”। यह एकादशी व्रत भगवान विष्णु के वामन अवतार को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को श्रद्धा और निष्ठा से करने पर जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वरुथिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि

  1. व्रती को एक दिन पहले यानी दशमी को सात्विक भोजन करके ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  2. एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर साफ वस्त्र पहनें।
  3. भगवान श्री हरि विष्णु की मूर्ति को स्नान कराकर पीले वस्त्र पहनाएं।
  4. दीपक जलाकर, धूप, फूल, तुलसी दल, और पंचामृत से पूजन करें।
  5. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
  6. व्रत कथा पढ़ें और भगवान वामन की स्तुति करें।
  7. रात्रि में जागरण करें और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार, राजा मांधाता नर्मदा नदी के किनारे कठोर तपस्या कर रहे थे। तभी एक भालू ने उन्हें पकड़कर घसीटना शुरू कर दिया। संकट की घड़ी में राजा ने श्री हरि विष्णु का स्मरण किया। भगवान श्री विष्णु ने वामन रूप में प्रकट होकर राजा को भालू से बचाया और उन्हें वरुथिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी।

इस व्रत के प्रभाव से राजा के सारे पाप नष्ट हो गए और उन्हें दिव्य लोक की प्राप्ति हुई। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान विष्णु की आराधना करता है, उसे भगवान स्वयं संकटों से मुक्त करते हैं।

वरुथिनी एकादशी के लाभ

  • जीवन के संकटों से मुक्ति
  • पापों का क्षय
  • मोक्ष की प्राप्ति
  • सुख-शांति और समृद्धि
  • स्वास्थ्य में सुधार

आज के अन्य महत्वपूर्ण योग और मुहूर्त

  • सूर्योदय: 5:36 AM | सूर्यास्त: 6:24 PM
  • राहुकाल: 1:36 PM से 3:12 PM तक
  • अभिजीत मुहूर्त: 11:34 AM से 12:25 PM तक
  • चंद्रमा: कुंभ राशि में रात्रि 11:43 तक, फिर मीन राशि में
  • नक्षत्र परिवर्तन: शतभिषा समाप्त – 6:35 AM, फिर पूर्व भाद्रपद
  • योग परिवर्तन: ब्रह्म योग समाप्त – 12:18 PM, फिर ऐंद्र योग

आज है श्री वल्लभाचार्य जयंती भी

आज के दिन श्री वल्लभाचार्य जी, जो कि पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक माने जाते हैं, की जयंती भी है। उन्होंने श्रीकृष्ण भक्ति का प्रसार कर हजारों भक्तों को आध्यात्मिक मार्ग दिखाया।

वरुथिनी एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का माध्यम है। यदि इसे श्रद्धा और विधिपूर्वक किया जाए, तो जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं। आज के दिन इस व्रत के साथ श्री वल्लभाचार्य जी का स्मरण करना भी अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है।

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