तुलसी माता की कहानी इन हिंदी | तुलसी माता की कहानी बताएं | तुलसी माता की कथा सुनाएं | Tulsi Mata ki kahani
तुलसी माता की कहानी
कार्तिक मास में सभी स्त्रियां तुलसी माता को सीचने जाती, तो कोई धन मांगती, कोई पुत्र मांगती, कोई सुहाग मांगती। सब कोई सींचकर कर आ जाती पर एक डोकरी सवा पहर रात को उठती और सवा पहर दिन चढ़े तब तुलसी माता की पूजा करती, तुलसी माता को सींचकर कहती है।
हे तुलसी माता सत् की दाता, मैं बिड़ला सींचू तेरा तू कर निस्तारा मेरा,
तुलसी माता बहू दीजिए, बेटी दीजिए, पोता दीजिए, लड्डू दीजिए,
पितांबर की धोती दीजिए, गहना दीजिए, घी का घड़ा दीजिए,
मीठा मीठा खीर और पूड़ी दीजिए, दाल भात का भोजन दीजिए,
धन दौलत दीजिए, बेटा पोता को काम दीजिए,
तुलसी को पता दीजिए, मुंह में गंगाजल दीजिए,
सूरज जी की साख दीजिए, जल यमुना की नीर दीजिए,
ग्यारस को दिन दीजिए, मारु तो बैकुंठ में बास दीजिए,
चंदन को दाग दीजिए, मरू तब आप श्री कृष्ण को कंधा दीजिए,
हर-हर करते वैकुंठे जावे रोज इतना कह कर आती थी।
उस डोकरी की इतनी सारी बातें सुन सुनकर तुलसी माता सूखने लगी। तब भगवान ने पूछा कि आपको सभी स्त्रियां आकर उगाती हैं। और पूजा करती हैं, तो भी आप सुख रही हैं। ऐसा क्या हो गया? तब तुलसी माता ने कहा कि आप मेरे मन की बात को मत पूछो। तो भगवान बोले कि अगर मैं नहीं पूछूंगा तो कौन पूछेगा।
तब तुलसी माता ने भगवान से कहने लगी कि एक डोकरी माई आती हैं। और रोज इतनी सारी मन्नत मांगती हैं। पर मैं सभी मन्नत को पूरा कर दूंगी। फिर भी मैं आपका कंधा कहां से दूंगी। तो भगवान बोले कि जैसा नसीब में होगा वैसा ही होगा। आप सोचिए मत और हरे-भरे होकर फूलिए।
भगवान ने कहा कि जब वहां मरेगी तब मौके पर मैं और आप ही कंधा दे देंगे। आप सुबह जब वह पूजा करने आए, तब कह देना कि सब कुछ तुम्हें मिल जाएगा।
कुछ दिनों बाद वह डोकरी ठोकर खाकर रास्ते में गिर कर मर गई। पूरे गांव के सभी लोग आए और डोकरी को सभी लोग धर्मात्मा मानते थे। उसको तुलसी जी की डोकरी कहते थे। उसके परिवार में कोई नहीं था। इसलिए गांव वालों ने ही उसके अंतिम संस्कार करने की योजना बनाई और उसे नहला कर जब बैकुंठी पर बैठाने के लिए उसे उठाने लगे। तू उसकी लाश इतनी भारी हो गई, कि उसे कोई नहीं उठा पाया।
तू से देखकर लोग ने तरह-तरह की बातें करने लगे कहने लगी कि यह इतना पूजा पाठ करती थी, हर समय माला फेरती थी, इसलिए यह इतना भारी हो गई है। वही पूरे गांव में चर्चा होने लगा, कि डोकरी माई कोई भक्ति नहीं करती थी, यह छल कपट करती थी। हम जिसे धर्मात्मा समझते थे वह पापी है। जो कि किसी से भी नहीं उठ पा रही है।
इधर भगवान ने सोचा कि मेरे भक्तों की निंदा हो रही है। इसलिए भगवान ने बूढ़े ब्राम्हण का भेष धारण करके आए। और वहां पर एकत्रित लोगों से पूछने लगे, कि यहां पर इतना भीड़ क्यों लगाया गया है। जिससे लोग कहने लगे कि यह डोकरी माई मर गई है। और पाप इन थी, जिससे वह किसी से उठ नहीं रही है। सब उठा उठा कर उसे थक गए हैं।
तब ब्राह्मण ने बोले कि मुझे एक बार डोकरी के कानों में कहने दो फिर वह देखो उठती है या नहीं, तो सभी लोग ने कहा कि आप भी प्रयास करके देख लीजिए। तब भगवान ने डोकरी के कानों में कहा कि, हे डोकरी माई देखो मैं आ गया। और जो डोकरी पूजा करते समय शब्द कहती थी। वह शब्द उसके कानों में कहने लगे।
तूं बिड़ला सींचू तेरा, मैं करू निस्तारा मेरा,
डोकरी माई बहू ले, बेटी ले, पोता ले, लड्डू ले,
पितांबर की धोती ले, गहना ले, घी का घड़ा ले,
मीठा मीठा खीर और पूड़ी ले, दाल भात का भोजन ले,
धन दौलत ले, बेटा पोता को काम ले,
तुलसी को पता ले, मुंह में गंगाजल ले,
ग्यारस को दिन ले, चंदन को दाग ले, श्री कृष्ण का कंधा ले,
इतना सुनते ही डोकरी हल्का हो गई, भगवान ने बोला आओ और उस को उठाओ। भगवान ने हाथ लगाया और डोकरी उठ गई सबको आश्चर्य हुआ। उसे खूब धूमधाम से ले जाया गया। भगवान ने उसे अपने कंधे पर ले गए।
पूरे गांव में डोकरी की चलावा बहुत ही अच्छा निकला था। जिससे उसको मुक्ति मिल गई और वह बैकुंठ में चली गई। सभी लोग देखते रह गए। सभी लोगों ने देखा कि मुर्दा घाट तक तो ब्राम्हण साथ ही आया था। लेकिन अब वह दिखाई नहीं दे रहा है। जिससे लोगों को समझ में आ गया कि वह भगवान आए थे।
हे तुलसी माता उसकी मुक्ति कराई, जैसे उसी उसी तरह सबकी भी मुक्ति कराना। सब को भगवान का ही कंधा मिले सब को स्वर्ग देना।