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रवि प्रदोष व्रत 8 जून 2025 – तिथि, महत्व, पूजा विधि, प्रदोष काल और पारण समय

प्रदोष व्रत हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और पुण्यदायक उपवास माना जाता है, जो भगवान शिव को समर्पित होता है। जब यह व्रत रविवार के दिन पड़ता है, तो इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह दिन आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसमें सूर्य देवता और भगवान शिव दोनों की कृपा प्राप्त होती है।

रवि प्रदोष व्रत
रवि प्रदोष व्रत

रवि प्रदोष व्रत का महत्व

रवि प्रदोष व्रत का धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व है। यह व्रत करने से भक्तों को आरोग्यता, दीर्घायु, मानसिक शांति, और धन-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह उपवास पापों के प्रायश्चित, सौभाग्य की प्राप्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को करने से सूर्य देव और भगवान शिव दोनों की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी होता है जो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से परेशान हैं या जिनके जीवन में स्थिरता और प्रगति की कमी है।

रवि प्रदोष व्रत की व्रत विधि

रवि प्रदोष व्रत की विधि पूर्ण श्रद्धा और नियमों के अनुसार की जानी चाहिए। नीचे व्रत की संपूर्ण विधि दी गई है:

  1. व्रतधारी व्यक्ति को प्रातःकाल स्नान करके भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
  2. दिनभर व्रत रखा जाता है, जिसमें फलाहार या निर्जल उपवास किया जाता है।
  3. संध्या के समय प्रदोष काल में शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करें।
  4. पूजा में बेलपत्र, धतूरा, दूध, दही, शहद, घी, अक्षत, चंदन आदि का उपयोग करें।
  5. “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें।
  6. पूजा के बाद शिव चालीसा और आरती का पाठ करें।
  7. अंत में भगवान शिव से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें।

रवि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा (संक्षेप में)

पुराणों में वर्णित है कि एक समय सूर्य देव को एक असाध्य रोग हो गया था, जिसका कोई इलाज नहीं मिल रहा था। तब ऋषियों ने उन्हें प्रदोष काल में भगवान शिव की उपासना करने की सलाह दी। सूर्यदेव ने श्रद्धा पूर्वक रवि प्रदोष व्रत किया और शिवलिंग की पूजा की। परिणामस्वरूप उनका रोग समाप्त हो गया और उन्हें आरोग्यता प्राप्त हुई। तभी से रवि प्रदोष व्रत को रोग मुक्ति और दीर्घायु के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है।

रवि प्रदोष व्रत 8 जून 2025 को क्यों मनाया जाएगा?

इस वर्ष रवि प्रदोष व्रत 8 जून 2025, रविवार को रखा जाएगा क्योंकि:

  • त्रयोदशी तिथि का आरंभ: 8 जून 2025 को सुबह 7:02 बजे
  • त्रयोदशी तिथि का समापन: 9 जून 2025 को सुबह 9:04 बजे

हिन्दू धर्म में व्रत हमेशा उदया तिथि (जिस दिन सूर्योदय के समय वह तिथि हो) को किया जाता है, इसलिए यह व्रत 8 जून को मनाया जाएगा।

पूजा का शुभ समय (प्रदोष काल)

प्रदोष व्रत की पूजा संध्या के समय प्रदोष काल में की जाती है। यह समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद तक का होता है।

  • प्रदोष काल का समय: शाम 6:01 बजे से 7:31 बजे तक

इसी समय के भीतर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। यह काल अत्यंत शुभ और फलदायक होता है।

रवि प्रदोष व्रत पारण का समय

व्रत का पारण (व्रत खोलना) चतुर्दशी तिथि में करना चाहिए। इस बार:

  • त्रयोदशी तिथि का समापन: 9 जून 2025 को सुबह 9:04 बजे
  • चतुर्दशी तिथि का आरंभ: 9 जून 2025 को 9:04 बजे

अतः 9 जून 2025 को सुबह 9:04 बजे के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।

रवि प्रदोष व्रत का पालन श्रद्धा, नियम और समय के अनुसार किया जाए, तो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन अवश्य आता है। भगवान शिव की कृपा से ना केवल मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति, आरोग्यता, और सुख-समृद्धि भी प्राप्त होती है। जो व्यक्ति सच्चे मन से इस व्रत को करता है, उसके जीवन में शांति, संतुलन और सुख-शांति बनी रहती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: रवि प्रदोष व्रत क्या होता है?
उत्तर: जब प्रदोष व्रत रविवार को पड़ता है, तो उसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और सूर्य देव दोनों की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य, दीर्घायु और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करना होता है।

प्रश्न 2: रवि प्रदोष व्रत 2025 में कब है?
उत्तर: वर्ष 2025 में रवि प्रदोष व्रत 8 जून, रविवार को मनाया जाएगा। त्रयोदशी तिथि का आरंभ इसी दिन सुबह 7:02 बजे से हो रहा है और इसी दिन सूर्योदय होने के कारण व्रत इसी दिन रखा जाएगा।

प्रश्न 3: इस व्रत का सबसे शुभ समय कब होता है?
उत्तर: इस व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, जो सूर्यास्त से पहले और बाद के 45-45 मिनट का होता है। 8 जून 2025 को प्रदोष काल का समय शाम 6:01 बजे से 7:31 बजे तक है।

प्रश्न 4: क्या रवि प्रदोष व्रत में कुछ खाया जा सकता है?
उत्तर: उपवास की कठोरता व्यक्ति की श्रद्धा और स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। कुछ लोग निर्जल व्रत रखते हैं, जबकि कुछ केवल फलाहार करते हैं। यदि स्वास्थ्य ठीक न हो तो डॉक्टर की सलाह लेकर फलाहार किया जा सकता है।

प्रश्न 5: व्रत का पारण कब किया जाना चाहिए?
उत्तर: व्रत का पारण चतुर्दशी तिथि में किया जाता है। 9 जून 2025 को सुबह 9:04 बजे के बाद, जब चतुर्दशी तिथि आरंभ हो चुकी होगी, उस समय व्रत का पारण कर सकते हैं।

प्रश्न 6: क्या महिलाएं रवि प्रदोष व्रत कर सकती हैं?
उत्तर: हां, महिलाएं भी यह व्रत कर सकती हैं। यह व्रत सौभाग्य, संतान सुख और पारिवारिक सुख-शांति के लिए अत्यंत फलदायक माना जाता है।

प्रश्न 7: क्या इस दिन भगवान शिव के साथ सूर्य देव की भी पूजा करनी चाहिए?
उत्तर: हां, चूंकि यह व्रत रविवार को आता है, जो सूर्य देव का दिन माना जाता है, इसलिए भगवान शिव के साथ सूर्य देव को भी अर्घ्य देना और उनका ध्यान करना शुभ माना जाता है।

प्रश्न 8: क्या रवि प्रदोष व्रत की कोई विशेष मंत्र या स्तुति होती है?
उत्तर: हां, इस दिन “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें। इसके अलावा शिव चालीसा, शिवाष्टक और महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना भी अत्यंत लाभकारी होता है।

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