कुंडली में षड्बल कैसे देखें? जानें ग्रहों की शक्ति का पूरा विश्लेषण
भारतीय वैदिक ज्योतिष में ग्रहों की शक्ति (बल) को मापने के लिए षड्बल का उपयोग किया जाता है। “षड्बल” का अर्थ होता है “छह प्रकार के बल”। यह सिद्धांत दर्शाता है कि किसी ग्रह की कुंडली में क्या वास्तविक शक्ति है, जिससे यह तय होता है कि वह ग्रह अपने फल देने में कितना सक्षम है। इस लेख में हम षड्बल को समझने, उसकी गणना करने और कुंडली में उसके महत्व को जानने के लिए विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।

षड्बल के छह प्रकार (षड् बल के भेद)
षड्बल में निम्नलिखित छह प्रकार के बल सम्मिलित होते हैं:
- स्थान बल (Sthan Bala)
- दिग्बल (Dig Bala)
- काल बल (Kal Bala)
- चेष्टाबल (Cheshta Bala)
- नैसर्गिक बल (Naisargik Bala)
- द्रष्टि बल (Drishti Bala)
अब हम प्रत्येक बल को विस्तार से समझते हैं:
1. स्थान बल (Sthan Bala)
ग्रह जिस भाव में स्थित होता है, उसकी स्थिति के अनुसार उसे स्थान बल प्राप्त होता है। इसमें विशेषतः निम्नलिखित उप-बल सम्मिलित होते हैं:
- उच्च नीच बल: ग्रह उच्च या नीच का है या नहीं।
- स्वगृह बल: ग्रह अपने ही राशिस्थान में है या मित्र राशि में है।
- षड्वर्ग बल: षड्वर्गीय चार्ट्स (राशि, होरा, नवांश आदि) में ग्रह की स्थिति।
उदाहरण: यदि सूर्य मेष राशि में है (जो उसका उच्च स्थान है), तो उसे अधिक स्थान बल प्राप्त होगा।
2. दिग्बल (Dig Bala)
हर ग्रह की एक दिशा होती है जिसमें वह सबसे शक्तिशाली होता है:
- गुरु और बुध पूर्व दिशा में
- शनि पश्चिम में
- मंगल दक्षिण में
- चंद्र और शुक्र उत्तर दिशा में
यदि कोई ग्रह अपनी अनुकूल दिशा में स्थित है, तो उसे दिग्बल प्राप्त होता है।
3. काल बल (Kala Bala)
काल बल समय और परिस्थिति पर आधारित होता है। इसके उप-भेद हैं:
- नटोनबल: दिन या रात्रि के समय के अनुसार ग्रह की शक्ति
- त्रिप्रश्न बल: वर्तमान समय में ग्रहों की स्थिति के अनुसार
- अयन बल: उत्तरायण और दक्षिणायन के अनुसार ग्रहों की शक्ति
सूर्य और मंगल दिन में शक्तिशाली होते हैं, जबकि चंद्रमा और शुक्र रात्रि में।
4. चेष्टाबल (Cheshta Bala)
यह बल ग्रह की गति के अनुसार होता है। जब कोई ग्रह वक्री (retrograde), अस्त (combust), या मार्गी होता है, तो उसके अनुसार उसकी चेष्टा बल की स्थिति बदलती है। वक्री ग्रहों को सामान्यतः अधिक चेष्टाबल प्राप्त होता है।
5. नैसर्गिक बल (Naisargik Bala)
यह जन्मजात बल होता है जो ग्रहों की प्राकृतिक शक्ति पर आधारित होता है। सभी ग्रहों का नैसर्गिक बल निश्चित होता है:
- सूर्य > चंद्र > मंगल > शुक्र > बुध > गुरु > शनि
सूर्य को सबसे अधिक नैसर्गिक बल और शनि को सबसे कम मिलता है।
6. दृष्टि बल (Drishti Bala)
जब कोई ग्रह दूसरे ग्रह को देखता है (दृष्टि डालता है), तो उसे दृष्टि बल प्राप्त होता है। यह बल दर्शाता है कि कोई ग्रह कितनी शक्ति से अन्य ग्रहों को प्रभावित कर रहा है।
उदाहरण: यदि शनि अपनी तीसरी, सातवीं या दसवीं दृष्टि से मंगल को देख रहा है, तो वह उस पर प्रभाव डालेगा और उसे दृष्टि बल प्राप्त होगा।
षड्बल की गणना कैसे करें?
षड्बल की गणना करना एक जटिल प्रक्रिया है, जो ज्योतिषीय सॉफ्टवेयर या मैन्युअल सूत्रों से की जाती है। परंतु कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:
- एक ग्रह को औसतन 360 शास्त्रीय इकाइयों (Shashtiamsa) की कुल षड्बल की आवश्यकता होती है।
- यदि किसी ग्रह की कुल षड्बल इससे अधिक है, तो वह ग्रह शक्तिशाली माना जाता है।
- किसी ग्रह को 425-500 से अधिक बल मिल रहा हो तो वह अत्यंत प्रभावशाली होता है।
आप ज्योतिषीय सॉफ़्टवेयर जैसे Jagannatha Hora, Parashara’s Light, Kundli Chakra आदि का उपयोग करके षड्बल तालिका (Shadbala Table) देख सकते हैं।
षड्बल का कुंडली में महत्व
- ग्रह फल की क्षमता का आकलन: केवल राशि और भाव देखकर ग्रह का फल नहीं देखा जा सकता, उसकी शक्ति भी देखनी होती है।
- दशा परिणाम का मूल्यांकन: ग्रह की दशा आने पर वह कितना फल देगा, यह उसके षड्बल पर निर्भर करता है।
- उपाय निर्धारण में सहायक: कमजोर ग्रहों को बलवान बनाने के लिए यंत्र, मंत्र, रत्न इत्यादि उपाय षड्बल के आधार पर तय होते हैं।
षड्बल बढ़ाने के उपाय
यदि किसी ग्रह का षड्बल कमजोर हो तो नीचे दिए गए उपाय उपयोगी हो सकते हैं:
- उस ग्रह के बीज मंत्र का जाप करें
- संबंधित ग्रह का रत्न धारण करें (जैसे कमजोर सूर्य हो तो माणिक्य)
- ग्रह के अनुकूल व्रत, दान या यज्ञ करें
षड्बल एक अत्यंत महत्वपूर्ण ज्योतिषीय तत्व है जो यह निर्धारित करता है कि ग्रह कितना सक्षम है अपनी भूमिका निभाने में। यह केवल जन्मपत्री में ग्रह की स्थिति नहीं बल्कि उसकी शक्ति, दिशा, गति, दृष्टि और समय के अनुसार आकलन करता है।
इस लेख के माध्यम से हमने षड्बल की परिभाषा, उसके छह भेद, उसकी गणना, उसका फलादेश में महत्व और उसके उपायों को गहराई से जाना। यदि आप किसी ग्रह की दशा, गोचर या फलादेश का सटीक विश्लेषण करना चाहते हैं, तो षड्बल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
विशेष सुझाव: यदि आप स्वयं गणना नहीं कर सकते, तो किसी अनुभवी वैदिक ज्योतिषी से अपनी कुंडली का षड्बल विश्लेषण अवश्य करवाएं। इससे आपकी जीवन की दिशा और उपाय दोनों स्पष्ट हो सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्र.1: क्या षड्बल हर ग्रह के लिए अलग-अलग होता है?
हाँ, हर ग्रह की अलग-अलग स्थिति, दिशा, समय और दृष्टि के अनुसार उसका षड्बल अलग-अलग होता है।
प्र.2: एक ग्रह को कम से कम कितना बल होना चाहिए?
एक ग्रह को न्यूनतम 360 शास्त्रीय इकाइयों (Shashtiamsa) का बल होना चाहिए ताकि वह कुंडली में फल दे सके।
प्र.3: षड्बल को कौन-से सॉफ़्टवेयर से देखा जा सकता है?
Jagannatha Hora, Kundli Chakra, Parashara’s Light आदि लोकप्रिय वैदिक ज्योतिष सॉफ़्टवेयर हैं जिनमें षड्बल तालिकाएं उपलब्ध होती हैं।
प्र.4: क्या कमजोर षड्बल वाले ग्रह उपाय से मजबूत हो सकते हैं?
हाँ, मंत्र, रत्न, दान, व्रत और यज्ञ जैसे उपायों से कमजोर ग्रहों को शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
प्र.5: क्या सभी छह बल बराबर महत्व रखते हैं?
जी हाँ, सभी छह बल ग्रह की शक्ति का संपूर्ण चित्र प्रस्तुत करते हैं और कोई भी बल उपेक्षित नहीं होना चाहिए।